Humbistari Ke Baad Ghusl Ki Dua | हमबिस्तरी के बाद ग़ुस्ल की दुआ

इस्लाम एक मुकम्मल ज़िंदगी का तरीका है, जिसमें इंसानी ज़िंदगी के हर पहलू को सलीके से समझाया गया है – चाहे वो इबादत हो, साफ-सफाई हो या फिर शारीरिक रिश्ते। मियाँ-बीवी के रिश्ते में हमबिस्तरी (जिन्सी ताल्लुक) के बाद ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि:

  • ग़ुस्ल क्यों ज़रूरी है

  • ग़ुस्ल की सही तरीका क्या है

  • हमबिस्तरी के बाद ग़ुस्ल की दुआ क्या है (Humbistari Ke Baad Ghusl Ki Dua)

  • कुछ अहम बातों का ध्यान रखना क्यों ज़रूरी है

ग़ुस्ल कब फ़र्ज़ होता है?

जब मर्द और औरत के बीच शरीअत के मुताबिक़ शारीरिक संबंध (हमबिस्तरी) होता है – यानी जब मर्द का औज़ (private part) औरत में दाख़िल होता है – चाहे वीर्य (मनी) निकले या नहीं, उस हालत में ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है।

इसके अलावा ग़ुस्ल इन हालात में भी वाजिब होता है:

  • नींद में मनी निकल जाए (एहतिलाम)

  • मासिक धर्म (हैज़) और निफ़ास (बच्चा जनने के बाद का खून) ख़त्म हो जाए

ग़ुस्ल की नियत और दुआ

ग़ुस्ल शुरू करने से पहले दिल में नियत (इरादा) कर लेना ज़रूरी है, यानी यह सोचें कि “मैं पाकी हासिल करने के लिए ग़ुस्ल कर रहा हूँ।”

ग़ुस्ल से पहले की दुआ:

“Bismillahi rahmani rahim”
(بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ)
अर्थ: अल्लाह के नाम से जो रहमत करने वाला और बहुत मेहरबान है।

अगर ग़ुस्लख़ाना ऐसा हो जहाँ नामे-ख़ुदा लेने की इजाज़त हो, तो यह दुआ पढ़ सकते हैं। वरना दिल ही दिल में नियत करना काफी है।

ग़ुस्ल का सही तरीका (सुन्‍नत तरीक़ा)

  1. नियत करें – दिल में सोचें कि आप नजासत से पाक होने के लिए ग़ुस्ल कर रहे हैं।

  2. “बिस्मिल्लाह” पढ़ें।

  3. दोनों हाथ धोएं

  4. अस्तिनों तक वुज़ू करें, जैसे नमाज़ के लिए किया जाता है (अगर नंगे हैं तो पाँव बाद में धो लें)।

  5. अगर नजासत लगी हो तो उसे धो लें

  6. फिर पूरा बदन भिगो दें, कोई हिस्सा सूखा न रह जाए:

    • पहले दाहिना (right) हिस्सा धोएं

    • फिर बाँया (left) हिस्सा

    • फिर सिर और बाकी का बदन

सिर के बालों की जड़ों तक पानी पहुँचना ज़रूरी है

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ग़ुस्ल के बाद की दुआ

हालाँकि ग़ुस्ल के बाद कोई मख़सूस दुआ हदीसों में नहीं आई, लेकिन आप वुज़ू के बाद की दुआ पढ़ सकते हैं:

“Ashhadu alla ilaha illallahu wahdahu la sharika lahu wa ashhadu anna Muhammadan abduhu wa rasuluh.”
(أَشْهَدُ أَنْ لا إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ)
अर्थ: मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद ﷺ उसके बंदे और रसूल हैं।

कुछ ज़रूरी हिदायतें

  • ग़ुस्ल में जिस्म का कोई हिस्सा सूखा न रहे।

  • बालों की जड़ों तक पानी पहुँचे।

  • औरतें अगर चोट या बीमारी के डर से बाल खोल नहीं सकतीं, तो सिर पर पानी बहा देना काफी है – मगर यह हालात में रियायत है।

  • मर्द-औरत दोनों को ग़ुस्ल की अहमियत समझनी चाहिए – यह न सिर्फ पाकी के लिए है, बल्कि इबादत (नमाज़, कुरान पढ़ना) के लिए भी जरूरी है।

नतीजा

इस्लाम में हमबिस्तरी के बाद ग़ुस्ल एक ज़रूरी इबादत है जो इंसान को बाहरी और रूहानी पाकीज़गी देता है। इसे सिर्फ एक फर्ज़ समझकर नहीं, बल्कि एक पाकीज़ा अमल समझकर करना चाहिए। ग़ुस्ल के साथ नियत, तरीका और पाकी का एहसास – ये सब इबादत को मुकम्मल बनाते हैं।

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